Thursday, February 12, 2009

..कहा हु में....

न शाम हे न सवेरा हे,अजब दयार में हु;
मै एक अरसाए बेरंग के हिसार मै हु,...

सिपाहे गैर ने कब मुझे जख्म जख्म किया
मै आप ही अपनी सासों की कारजार मै हु ...

कशा कशा जिसे ले जायेंगे सरे मकतल ;
मुझे खबर हे की मै उसी कतार मै हु...

अता पता किसी खुशबु से पूछ लो मेरा;
यही कही किसी मंजर,किसी बहार मै हु ..

न जाने कोन से मोसम मै फूल महकेंगे;
न जाने कब से तेरे चश्म-ऐ- इन्तजार मै हु...

शरफ मिला हे कहा तेरे हमराही का मुझे ;
तू शहसवार और मै तेरे गुबार मै हु.....

11 comments:

  1. USTADANA GAZAL HAI SAVITA JI, ITNA ACHHA LIKHTI HAIN TO POORE PARICHAY KA CHHUPAV KYON ?

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  2. सुन्दर रचना . हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.

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  3. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

    एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

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  4. बहुत खुबसूरत शब्द है, ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है | |
    विनय के जोशी

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  5. अता पता किसी खुशबु से पूछ लो मेरा;
    यही कही किसी मंजर,किसी बहार मै हु ..

    सुंदर अभिव्यक्ति, स्वागत.

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  6. ब्लॉग जगत में आपके शुभ आगमन पर हार्दिक बधाई .............

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  7. हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। बढि़यां लिखे। हजारों शुभकामनांए।

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  8. achha likha hai lakin Intzar Kuch Lamba hai.....??
    happpy valentine day

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  9. बहुत सुन्दर रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।

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