गुलाबो की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हे...
मुहोब्बत करने वाले खुबसूरत होते हे.....
किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया हे...
ग़ज़ल के रेशमी धागों में यु मोती पिरोते हे...
पुराने मोसम के नामे नामी मिटते जाते हे...
कही पानी,कही शबनम, कही आसू भिगोते हे...
यही अंदाज़ हे मेरा समंदर फतह करने का..
मेरी कागज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते हे...
सुना था हम महफिलों की जान होते थे...
बोहोत दिनों से अब पत्थर हे न हस्ते हे न रोते हे...
Thursday, February 12, 2009
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apni pasand ki chijon se milaya apne. gahrati in dilchaspiyon men kashish hai.
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