Thursday, February 12, 2009

अक्स-ऐ-खुशबु बिखरने से न रोके कोई
और गर बिखर जाऊ तो मुजको न समेटे कोई...

कॉप उठती हु में ये सोचके तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तेरा नाम न पढ़ले कोई..

जिस तरह से ख्वाब मेरे हो गए रेजा रेजा
इस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई ..


अब तो इस राह से वो शख्स गुजरता भी नहीं
अब किस उम्मीद से दरवाजे पे जाके कोई ...

कोई आहट, कोई आवाज,कोई चाह नहीं
दिल की गलिया सुनी हे,आये कोई...

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