पूरा दुःख और आधा चाँद, हिज्र की शब् और ऐसा चाँद;
दिन में वहशत बहल गई थी,रात हुई और निकला चाँद ;
किस मलकत से गुजरा होगा ,इतना सहमा सहमा चाँद,
यादो की आबाद गली में,घूम रहा हे तन्हा चाँद;
मेरी करवट पे जाग उठे,नींद का कितना कच्चा चाँद,
मेरे मुख को किस हैरत से,देख रहा है भोला चाँद;
इतने घने बादल के पीछे,कितना तन्हा होगा चाँद;
आंसू रोके नूर नहाये, दिल दरिया तन सहरा चाँद,
इतने रोशन चेहरे पर भी,सूरज का है साया चाँद,
जब पानी में चेहरा देखा,तुने किसको समझा चाँद,
रात के शानो पे सर रख्हे देख रहा है सपना चाँद;
सूखे पत्तो की झुरमुट में,शबनम थी या नन्हा चाँद,
हाथ हिला कर रुखसत होगा,उसकी सूरत हिज्र का चाँद,
सहरा सहरा भटक रहा हे,अपने इश्क में सच्चा चाँद........
Thursday, February 12, 2009
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