Thursday, February 12, 2009

...यही जिंदगी हे...कभी धुप,कभी छाव...

ना कर शुमार की हर शेह गिनी नहीं जाती..
ये जिंदगी हे मेरे दोस्त....हिसाबो से जी नहीं जाती.....

यु तो शाख से पत्ते गिरा नहीं करते...
बिछड़ के भी लोग ज्यादा जिया नहीं करते...
आने वाले हर मोसम को शुमार करो...
जो दिन गुज़र गए उन्हें गिना नहीं करते

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