Wednesday, February 11, 2009

कुछ न कुछ तो कह जाता हे आखो का भर आना भी....

कोई कहानी,कोई किस्सा, गम का कोई अफसाना भी;
कुछ न कुछ तो कह जाता हे आखो का भर आना भी....

कुछ आसू बह जाते हे तो जी हल्का हो जाता है ;
गम को और हवा देता हे लोगो का समजाना भी...

अपनों ने जो ज़ख्म दिए है काश कभी ना भर पाए;
अच्छा लगता है अक्सर ,ज़ख्मो को सहलाना भी ...

आसू पीना ,लब को सीना ये तो हमको आता था;
जाने केसे सीख गए हम दिल के ज़ख्म छुपाना भी.....

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