Thursday, February 12, 2009

...शाम हो जाये...

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये,
चिरागों की तरह आँखे जले जब शाम हो जाये,
में खुद भी एहतियातन उस गली से कम गुजरता हु,
कोई मासूम क्यों इस दिल के लिए बदनाम हो जाये...

अजब हालत थे यु दिल का सोदा हो हो गया आखिर,
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये,
संदर के सफ़र में इस तरह आवाज दो हमको,
की हवाए तेज़ हो और किश्तियों में शाम हो जाये...

मुझे मालुम है उसका ठिकाना फिर कहा होगा,
परिंदा जब आसमान छूने में नाकाम हो जाये,
उजाले अपनी यादो के साथ रहने दो हमारे,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये...

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