सच तो यह हे की गुमां हु में भी,
तू नहीं तो कहा हु में भी ,
जिनमे जल बुझ गए अहबाब मेरे,
उन मकानों का धुआ हु में भी...
याद करता हु पुरानी बाते,
सोचता हु जवा हु मै भी,
मुजमे रहती हे ये परिया कैसी ,
क्या कोई अँधा कुआ हु मै भी....
झूठ ही झूठ भरा हे मुझमे,
किसी मुजरिम की बया हु मै भी,
ख्वाब मै देखकर तुझको ,
ऐसा लगता हे, हां! हु मै भी....
Thursday, February 12, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment